Wednesday 31 December 2014

नव वर्ष मंगलमय हो

शब्द ब्रह्म है .नव वर्ष मंगलमय हो
अब आपको ये बताने की जरूरत तो है नहीं कि शब्द ब्रह्म क्यों है पर इतना ज्ञानी होने के बाद भी आप पिछले ३ दिन से औॅर आगे १० दिन तक सबसे यही कहते मिल जायेंगे कि नव वर्ष मंगलमय हो | अब जैसा मैं समझता हूँ आप यही तो चाहते है कि सामने वाले का ३६५ दिन शुभ हो जब आप उसके इतने शुभ चिंतक है तो क्यों नहीं पूरे वर्ष सामने वाले के शुभ चिंतक बन कर रहते है ? आज जिससे नव वर्ष का मंगलगान कर रहे है कल उसी की बुराई , उसे ही गिरना और ना जाने क्या क्या करने लगेंगे यही नहीं जब वही व्यक्ति कष्ट में होगा तब उसको शुभकामना देने वाले साथ तक नहीं होंगे यानि आप मानते है कि आप फर्जी बोलते है | चलिए आज तो सीख लीजिये बोली एक अमोल है जो कोई बोलय जनि ....हिये तराजू तौल के तब मुख बाहर आनि......उसी से अपने शब्दों का प्रयोग कीजिये जिसके लिए आपके दिल में मंगल कामना हो ............क्या आपको नहीं लगता है कि शरीर है तभी शब्द बनते और निकलते है यानि जीवन का एक अंग है शब्द है तो फिर क्यों शब्द का उपहास उड़ाते है क्यों द्रौपदी की तरह उसका चीर हरण करके सिर्फ अपने दिखावे में नव वर्ष मंगल मई का नारा लगाते है ? मैं जनता हूँ कि आपको ये साडी बात फर्जी लग रही है आखिर मजा लेने में हर्ज ही क्या भले ही वो शब्द क्यों ना हो ???खैर मैं अभी तक नहीं समझ पाया कि किसके लिए मेरे मन में पूरे वर्ष कि शुभ कामना है और उस कामना को निभाने के लिए मैं क्या किसी निर्भया के लिए खड़ा हो पाउँगा ???? वैसे आप के शब्द का क्या मोल है बताइयेगा जरूर ...........२०१५ में आप सच के साथ जीना सीखे वैसे २०१५ का सामना आप करेंगे एक रात से गुजर कर ही तो अँधेरे से लड़ना तो सीख लीजिये ( अखिल भारतीय अधिकार संगठन )

Tuesday 30 December 2014

औरत , विधवा और सशक्तिकरण

औरत , विधवा ...सशक्तिकरण
हमारा देश भारत कभी इस देश में अगर कोई महिला विधवा हो जाती थी तो उसको या तो अपने पति के साथ चिता में जाँदा जलना पड़ता था या फिर उसको किसी मंदिर के बाहर भेख मांग कर या किसी आश्रम में जीवन बिताना पड़ता था | मैं कोई फर्जी बात नहीं कर रह आप चाहे तो आज भी वृन्दावन और काशी में इसके अवशेष देख सकते है और हो बी क्यों न हमारे देश में औरत को लक्ष्मी भी कहा जाता है और लक्ष्मी चंचल होती है तो भला ऐसी चंचल नारी का तब क्या काम जब जिस पुरुष की दासी माफ़ कीजियेगा अर्धांगिनी बन कर वो किसी घर में गयी थी | क्या आपने वाटर पिक्चर देखि है तब तो आप को कुछ भी बताने की जरूरत ही नहीं | कितना बढ़िया था जब मनुष्य ने जानवर से अपने को ऊपर उठाने के लिए औरत को बलि का बकरा ( बकरी नही चलेगा आखिर आप मनुष्य है बकरी को आप कैसे मार सकते है उसमे माँ का स्वरुप है वो तो आप ना जाने क्या देख कर औरत को मार डालते है )बना दिया पृथ्वी पर पाये जाने वाले सभी जीव जंतु में हर वर्ष प्रजनन के लिए नर मादा चुनाव करते है और अपने वंश को बढ़ाते है पर आप तो मनुष्य है भला ये भी कोई बात है कि हर साल सिर्फ प्रजनन के लिए पुरुष महिला एक दूसरे को खोजे ( अब मुझे नहीं पता फिर ये कोठे और वैश्यावृति किसके लिए बनी ??? शायद यहाँ जाने वाले मनुष्य नही थे ) और लीजिये हमने बना दिया संस्कृति का पिटारा और जब एक बार मिले तो बस ऊरी जिंदगी साथ निभाने का वादा वो बात और है कि पुरुष हमेशा से दानवीर रहा है तो वो एक से वादा ना करके अपनी पत्नी के साथ साथ कई और लोगो से वादा निभाने लगता है आखिर पुरुष का शरीर है किस लिए परोपकार के लिए ना और नीति में कहा भी गया परोपकाराय थर्मिदं शरीरं ( परोपकार के लिए शरीर है) पर क्या मजाल जो औरत एक बार किसी की होने के बाद और किसी का भी ध्यान  कर ले आखिर उसके लिए ही तो सात जन्मो का रिश्ता होता है उसी के लिए तो स्वराज में रिश्ते बनते है ( इसी लिए कुछ ज्यादा जी विवाहित जिन्दा जल कर स्वर्ग  भेजी जाने लगी !!!!!!!!!!!) वो तो भला हो सरकार के निकम्मे पन का कि उसने लड़कियों की भूर्ण हत्या पर रोक नहीं लगाया मतलब कानून बना दिया बाकि सब भगवान जाने !!!!!!!!! जो कम लड़कियों के होने कारण तलाक और लिविंग रिलेशन को बढ़वा देकर औरत को आजादी का एहसास कराया | कम से कम अब औरत सिर्फ एक ही के साथ तो नहीं बंधी रहती शादी किसी से , माँ बनना किसी से , | हा तो मैं क्या कह रहा था इस तरह के महिला सशक्तिकरण का ही ये परिणाम हुआ कि लड़की अपने पैरों पर खड़ी हो गयी ( वो बात अलग है हर औरत कमर दर्द , स्लिप डिस्क कि मरीज हो गयी पर आ तो गयी पुरुष के बराबर )| नौकरी करने लगी उसके हाथ में पैसा आने लगा !!!!!!!ये कोई कम बड़ी बात है कि लक्ष्मी खुद जान पायी कि पैसा क्या होता है और जो महिला एक एक पैसा के लिए अपने पति के आगे मोहताज होती थी वही महिला अपने पति के मरने पर पेंशन पाने लगी ( क्षमा करियेगा महिला को अपनों के मरने की बात पसंद नहीं है पर विधवा ज्यादा ही होती है ) अब आम के आम गुठलियों के दाम एक तो महिला खुद नौकरी करने लगी और ऊपर से पति की भी पेंशन ( मुझे नहीं मालूम की सरकार इसे तो सरकारी धन लेना क्यों नही मानती ) और जब महिला खुद सेवा निवृत्त हुई तो दो दो पेंशन अब तो आप समझ गए होंगे ना कि महिला सशक्ति करण के क्या क्या लाभ है पर अब ये ना पूछने लगिएगा कि विधवा होने के बाद औरतों की जिंदगी लम्बी क्यों हो जाती है ??????????? ( व्यंग्य की सच्चई समझ कर पढ़े ) अखिल भारतीय अधिकार संगठन

Sunday 28 December 2014

कितनी औरत एक देश में

औरत होने का सच ................
आज मुझे अचानक दिल के पास दर्द होने लगा , डॉक्टर कई बार बता चुके है की ये दिल का मामला नहीं है ( वैसे लोग मानते है कि मेरा सारा मामला ही दिल का है ) पर डरपोक जो हूँ सोचता हूँ कही किसी दिन डॉक्टर गलत हो गया तो .......और बस मैं अकेले रहने के कारण सड़क पर निकल गया कुछ देर खुली हवा के लिए ..दर्द इतना ज्यादा है कि लग रहा था कि बायां हिस्सा ही टूट कर गिर जाये काश टूटता कुछ लोग इस ठंडक में हड्डी जला कर ही सुकून पा जाते पर इतने दर्द में सोचने लगा कि मेडिकल साइंस कहता है कि एक साथ शरीर कि १२ बड़ी हड्डियों के एक साथ टूटने पर जितना दर्द होता है उतना ही दर्द एक लड़की को माँ बनने कि प्रसव वेदना में होता है पर इतना दर्द सहने वाली माँ को एक राज्य क्या देता है जननी सुरक्षा योजना के १४०० रुपये वैसे एक किलो देशी घी ५५० रुपये और दूध एक किलो ४८ रुपये में है | अब ये आप सोचिये कि इतना दर्द सहने वाली औरत को १४०० में क्या मिल सकता पर आप तो संतोषम परम सुखम वाले देश के है नही से तो कुछ भला !!!!!!!!!!! मिल तो रहा है पर वो कौन सी औरत है जो नौकरी करती है और यही सरकार उनको ६ माह का मातृत्व लाभ अवकाश देता है वो ही पूरे वेतन के साथ !!!!!!!समझ रहे है ना अगर कोई महिला डिग्री कालेज में टीचर है तो कम से कम २ लाख पचास हज़ार रुपये मुफ्त में वो भी इस लिए क्योकि वो माँ बनी है !!!!!!!!!!!१११ तो बाकि औरत क्या सिर्फ १४०० रुपये भर की है या फिर राज्य और सरकार सिर्फ उन्ही के लिए है जो नौकरी में है | समानता की बात करके एक औरत को १४०० और एक को २.५० लाख ???????आरे अगर सामंता रखनी है तो नौकरी करने वालो को बिना वेतन की छह माह की छूटी दो और १४०० जननी सुरक्षा के नाम पर अगर ऐसा नहीं है तो देश की औरतों सतर्क हो जाओ तुम वैसी औरत नहीं जो नौकरी करती है | अगर छुट्टी और पैसा दोनों चाहिए तो जल्दी से पढ़ लिख कर नौकरी कर डालो ये घर की नौकरी बजाने को सरकार काम नहीं मानती है ये भी कोई काम है......... काम तो वो है जो ऑफिसमे किया जाये खेत में काम करके देश को अन्न देना , घर में खुद को कैद करके एक घर को सवारने के लिए खुद के अस्तित्व को खो देना भी कोई काम है और सरकार ऐसे काम को ना तो सम्मान देती है और ना पुरुस्कार !!!!आरे भाई मैं कोई देश के विरुद्ध थोड़ी ना हूँ मैं तो खुद समझना चाहता हूँ कि आखिर औरत वो वाली कौन है जिसकी पूजा करने पर देवता निवास करते है | अब जिस लक्ष्मी के साथ छुट्टी और वेतन दोनों होगा वो भी बच्चा पैदा करने कि ऐवज में तो देवता आये ना आये पर पति देवता तो जरूर घर में आराम करते मिल जायेंगे | क्या आप खुद नहीं मानती कि राज्य ऐसी औरत को ही सम्मान देना चाहता है जो बच्चा पैदा करने के साथ उनके लिए काम करें ना कि घर और खेत में | क्या आप अभी तक जननी  सुरक्षा में ही उलझी है कभी तो १४०० से ज्यादा अपनी कीमत समझिए भारतीय नारी जी ....बुरा लगे तो माफ़ कीजियेगा ( व्यंग्य समझ कर पढ़िए ) अखिल भारतीय  अधिकार संगठन

Saturday 27 December 2014

महिला और राजनीती

महिला और देश की राजनीति...............
यत्र नरियस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता ....अब नारी की ये पूजा है की नहीं उसको मारो पीटो पर मैंने तो कुछ और बताना चाहता हूँ आपको मालूम होगा कि देश के नेता बेचारे महिलाओ के प्रति इतने संवेदन शील हैं कि उनको रात रात भर नींद नहीं पड़ती क्योकि उनको मालूम है की माँ ही घर की पथ शाला है तो लीजिये उसने दे दी पूरे दो साल की बच्चा पालन अवकाश पर ये अवकाश  किनके लिए है ????????? अब इतने आप काम अक्ल भी नहीं है !!वही नारी जिससे देश चलता है यानि नौकरी करने वाली नारियां अब ये न पूछने लगिएगा कि गावों और घरेलू नारियां क्या है ??? वो आप उनसे पूछिये जो कहते है कि देश के संविधान का आरम्भ ही हम भारत के लोग कह कर होता है | अब कौन हम भारत केलोग में आते है मुझे भी नहीं मालूम लेकिन मैं तो ये कह रहा था एक उच्चतर शिक्षा में काम करने वाली नयी नियुक्त शिक्षिका को २४ महीने के वेतन के साथ अवकाश में ९ लाख साठ हज़ार रुपये भी मुफ्त में मिलेंगे आखिर बच्चा पालने का काम कोई ऐरा गैर काम तो है नहीं तो समझ गए ना खास तौर पर वो महिलाये जो पढ़ी लिखी नहीं है और माँ पर माँ बनती जा रही है जरा सीखिये देश के महिला सशक्ति करण से  , नौकरी भी पायी और बच्चा पालने के लिए २४ महीने कि मुफ्त खोरी अलग से | कम से कम गावों कि और घरेलू महिलाओ के लिए कुछ दिन का सम्मान वेतन दे देते आखिर वो भी इसी देश में माँ बनी है क्या उन्हें घर के कामों के अलावा बच्चे को नहीं पालना या फिर देश में उन्हें ही औरत समझा जायेगा जो सरकार के लिए काम करेंगी !!!!!!! मेरा मतलब नौकरी करेंगी | जरा सोच कर देखिये एक महिला जो नौकरी भी पायी और जिस काम के लिए नौकरी पायी उस्स्को भी करने से २४ महीने आज़ाद आखिर बच्चा जो पालना है तो महिला कब समझेंगी कि वो बच्चा पैदा करने की मशीन नही बल्कि लक्ष्मी है जो धन देती है अब ये ना पूछियेगा कि जिन्होंने शादी नहीं की या जिनके बच्चे ही ना हुए उनका क्या ????????अब भाई ये तो यहाँ की जगत गुरु देश की सरकार बताये कि क्या बूढ़े माता पिता इस देश में पालन के हक़दार नहीं और जिन्होंने बच्चे ही नहीं पैदा किये और शादी ही नहीं की वो तो भारत रत्न है आखिर किसी को तो इस देश की जनसँख्या का ख्याल है वैसे आप सोचियेगा जरूर कि सरकार ने सिर्फ नौकरी करने वाली उन्ही महिलाओं को क्यों इतने सुख दिए जो बच्चो की माँ बनी वैसे अगर ऐसा है तो मेरी एक सलाह है उन सभी नारियों से जो इस तरह की छुट्टी को लेकर कुंठित है जो अविवाहित है या बच्चे नहीं है आरे भाई किसी बच्चे को गॉड ले लीजिये उसको घर मिल जायेगा और आप दो साल की छुट्टी !!!!! हैं न कमाल का उपाए आखिर देश का विकास जरुरी है या नौकरी के नाम पर हर दिन छुट्टी !!!!! पर सोचियेगा कि देश के नेता के लिए इस देश में वास्तव में महिला कौन है ??????????? ( व्यंग्य समझ कर पढ़िए अखिल भारतीय अधिकार संगठन )

Friday 26 December 2014

औरत मनुष्य नहीं है

औरत एक कानून अनेक ..........
वैसे तो हो सकता है कि आपको मेरी रोज रोज औरत के लिए बात करना अच्छा ना लगे पर आज एक शिक्षक होने के नाते कुछ ऐसा लगा जो आपको बताना जरुरी लगा तो लिखने बैठ गया | देश में शाम ६ बजे के बाद महिला ठाणे में नहीं रोकी जा सकती है और अगर रोकी जाएगी तो कोई महिला पुलिस जरूर होगी | यही नहीं महिला से पूछ ताछ करना हो या गिरफ्तार महिला के लिए महिला पुलिस का होना जरुरी है | महिला उत्पीड़न में भी तो विशाखा के दिशा निर्देश है उसमे जाँच में किसी महिला का होना जरुरी है |कोई कारन होगा कि देश क्या पूरे विश्व में कोई खेल महिला पुरुष का साथ साथ नहीं होता यहाँ तक  शतरंज जैसा खेल भी अलग होता है | चलिए थोड़ी और स्तरहीन बात कह देतेहै स्नान घर शौचालय  सब अलग होते है| क्या अब भी आपको समझाना पड़ेगा कि ऐसा क्यों होता है ??? चलिए आप इतना तो समझ गए क्योकि औरत का जीवन आवश्यकता सब अलग है बहुत सी ऐसी समस्याएं है और परेशानी जो एक महिला किसी समक्ष महिला से कह सकती है | महिला की सुरक्षा केलिए महिला के लिए अलग से बस चलायी जाने लगी पर देश में उच्च शिक्षा में ऐसा कुछ भी नहीं है क्योकि वहां की महिला शिक्षक को क्या जरूरत ???????कि उनकी समस्याओ को सुनने के लिए महिलाये ही हो पर आप कहा ये सब मैंने वाले क्योकि जब तक महिला विकास मंत्रालय या राष्ट्रीय महिला आयोग या राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ये ना कहे कि महिला के लिए प्रबंध समिति में एक तिहाई महिलाये होनी चाहिए तो भला आप कहा आवाज उठाने वाले !!!!!!!!! राज्य महिला आयोग से कहने जाओ तो कहेगा किसी महिला ने तो आज तक कुछ कहा नहीं आपके पेट में दर्द क्यों हो रहा है | विश्वविधालय , महा विद्यालय से कहो तो कहेगा अनुशासनहीनता दिखा रहे है  ये उनके विरुद्ध कार्य है पर क्या प्रबनध तंत्र या एग्जीक्यूटिव कौंसिल में एक तिहाई महिला नहीं होनी चाहिए | एक मजे दार बात उत्तर प्रदेश ही नहीं हर राज्य के उच्चतर शिक्षा सेवा में महिला कालेज में पुरुष शिक्षक की नियुक्ति नहीं हो सकती पर प्रबंध तंत्र के लोग पुरुष बन सकते है है ना अंधेर  नगरी चौपट राजा .......पर हम क्यों बोले क्या सरे जहाँ का दर्द हमी ने उठा रखा है जब सरकार को नहीं दिखाई दे रहा तो हम कौन होते अपना हाथ जलाने वाले लेकिन मुझे तो आ बैल मुझे मार इतना अच्छा लगता है कि आपसे बात करने बैठ गया अब देखिये ऐसे प्रबंध तंत्र क्या गुल खिलाते है  ???क्या महिला सशक्तिकरण के दौर में प्रबंध तंत्र में परिवतन नहीं होना चाहिए आरे भैया संसद में महिला आने लगी है कब तक महिला को अपनी जागीर समझोगे कभी तो उनको अपने लिए जीने दो !!!!!!क्या आप में ताकत है कि प्रबंध तंत्र में महिला को भी लाये३३% !!! मैंने तो चला किसी महिला को उकसाने आखिर संविधान के नीति निदेशक तत्व में लिखा जो है महिला की गरिमा के लिए काम करने के लिए !!!!!!आअप भी नही उकसाएंगे  आरे इस अच्छे काम के लिए उकसा डालिये ना वैसे तो ना जाने किसी किस काम के लिए महिला  को ??????????????? समझदार को इशारा काफी ( अखिल भारतीय अधिकार संगठन आपसे इस बिंदु पर सहयोग चाहता है )

Wednesday 24 December 2014

atal bihari bajpeyi aur mera anubhav

अटल बिहारी बाजपेयी और मेरा सम्मान
मुझे आज भी वो दिन नही भूलता जब गन्ना संस्थान लखनऊ में भारत के पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने कादम्बनी महोत्सव में मेरी कहानी संदेह को सम्मानित किया| मेरी कहानी भारतीय रिश्तो पर थे जो आज के दौर में कितने बदल चुके है | जब एक लड़का किसी सड़क पर किसी लड़की को बहन कहता है तो समाज कैसे देखता है और उस लड़की का क्या हश्र होता है ? जब कहानी के अंश सुनाये जा रहे थे  तो अटल जी ने मुझसे हस्ते हुए पूछा कि इस कहानी पर मैं कितना खरा हूँ ? और मैंने कहा कि ये कहानी उतनी ही खरी और सच है जितना आपका राजनीती में व्यक्तित्व और आज जब उनके भारत रत्न देने की खबर सुनी तो ऐसा लगा कि जैसे मेरा भी कद उचा हो गया है क्योकि अब मैं जब भी अपने बारे में सोचूंगा तो तो भारत रत्न का भाव स्वतः ही आ जायेगा |
डॉ आलोक चान्टिया
अध्यक्ष
अखिल भारतीय अधिकार संगठन & प्रवक्ता मानव शास्त्र , के के सी ,लखनऊ

Tuesday 23 December 2014

औरत होने का सच

औरत और समानता
अपने देश में ही नहीं पूरे विश्व में औरत केलिए सबसे ज्यादा कानून बनाये गए है | आप कह सकते है कि फर्जी औरतों को सशक्त किया जा रहा है | क्या जरूरत है इन कानूनो की?? आप लोग बिलकुल सही सोच रहे है कोई जरूरत नहीं इन कानूनों की क्योकि जब हम आप अपनी तरह ही महिला के लिए भी सोचेंगे तो कानून की जरूरत कहाँ रह जाएगी पर अगर कानून घटने के बजाये दिन प्रतिदिन महिलाओं के लिए बनते ही जा रहे है तो आप मान भी लीजिये कि आज औरत को कानून के सहारे बराबरी के दर्जे पर लाया जा रहा है वरना हम उसको बराबरी पर देखना नहीं चाहते क्या आपको अभी भी नहीं लगता कि सैकड़ों कानून स्वयं में ये बताने के लिए काफी है कि औरत न जाने कितने मामलों में पुरुष से कम मणि जा रही है और उसको उस स्तर तक लेन के लिए जो प्रयास किया जा रहा है उसमे उस महिला को इतनी बाधाओं का सामना कर पड़ रहा है कि उसे कानून के सहारे सुरक्षित किया जा रहा है | पर मन से हम कब महिला को समान समझेंगे ???????????? क्या कानून की शून्यता महिला के लिए कभी आ पायेगी या वो हमेशा सामाजिक के बजाये विधिक महिला बन कर ज्यादा अपना जीवन बिताएंगी ??????खैर  आप मानिये चाहे न मानिये लीजिये औरत के साथ बलात्कार करने वाले को फांसी देने की तैयारी चल रही है !अब तो मान लीजिये कि मौत का भय दिखा कर औरत को पुरुष की तरह सड़क पर चलने निकलने का हौसला दिया जा रहा है !!!!!!!!!!!!!!!!!!!! औरत के रहम पर जन्म पाने वालों के बीच औरत अपने लिए नये की मांग करती है शायद इससे अच्छा व्यंग्य क्या हो सकता है ( अखिल भारतीय अधिकार संगठन )

Friday 12 December 2014

ये भी तो आदमी है


मुझे भी जीने दो ...........

कूड़े की गर्मी से ,
जाड़े की रात ,
जा रही है ,
पुल पर सिमटे ,
सिकुड़ी आँख ,
जाग रही है ,
कमरे के अंदर ,
लिहाफ में सिमटी ,
सर्द सी ठिठुरन ,
दरवाजे पर कोई ,
अपने हिस्से की ,
सांस मांग रही है ,
याद करना अपनी ,
माँ का ठण्ड में ,
पानी में काम करना ,
खुली हवा में आज ,
जब तुम्हारी ऊँगली ,
जमी जा रही है ,
क्यों नहीं दर्द ,
किसी का किसी को ,
आज सर्द आलोक ,
जिंदगी क्यों सभी की ,
बर्फ सी बनती ,
पिघलती जा रही है ...................
आप अपने उन कपड़ों को उन गरीबों को दे दीजिये जो इस सर्दी के कारण मर जाते है हो सकता है आपके बेकार कपडे उनको अगली सर्दी देखने का मौका दे , क्या आप ऐसे मानवता के कार्य नहीं करना चाहेंगे ??????? विश्व के कुल गरीबों के २५% सिर्फ आप के देश में रहते है इस लिए ये मत कहिये कि ढूँढू कहाँ ?????? अखिल भारतीय अधिकार संगठन

Thursday 11 December 2014

रोटी और आदमी

घर के बाहर ,
अक्सर दो चार ,
रोटी फेंकी जाती है ,
कभी उसको ,
गाय कहती है ,
कभी कुत्ते खाते,
मिल जाते है ,
घर के बाहर ,
खड़ा एक भूखा ,
आदमी भूख की ,
गुहार लगाता है ,
उसे झिड़की ,दुत्कार ,
नसीहत मिलती है ,
पर वो घर की ,
रोटी नहीं पाता है .....................जब आपके पास रोज घर के बाहर फेकने के लिए रोटी है तो क्यों नहीं रोज दो तजि रोटी किसी भूखे को खिलाना शुरू कर देते है क्या मानवता का ये काम आपको पसंद नहीं कब तक गाय और कुत्तो को रोटी खिलाएंगे , ये मत कहियेगा जानवर वफादार होता है , आप बस घर के बाहर पड़ी रोटी पर सोचिये ...........अखिल भारतीय अधिकार संगठन

Tuesday 9 December 2014

कैसा मानव कैसा मानवाधिकार

अखिल भारतीय अधिकार संगठन विश्व मानवाधिकार दिवस की पूर्व संध्या पर ये विचार करना जरुरी है कि क्यों मानव को अधिकारों की जरूरत पड़ी क्या वो भटक गया है .हम किस मानव के अधिकारों के लिए चिंतित है.............
मानव ..........
कही कुछ आदमी ,
मिल जाये तो ,
मिला देना मुझ से ,
दो पैरों पर ,
चलने वाले क्या ,
मिट गए जमी से ,
जीते रहते ,
खुद की खातिर ,
जैसे गाय और भालू ,
रात और दिन ,
बस खटते रहते,
भूख कहाँ मिटा लूँ ,
कभी तो निकलो ,
अपने घर से ,
चीख किसी की सुनकर ,
कुचल जाएगी पर ,
निकलती चीटीं ,
हौसला मौत का चुनकर ,
राम कृष्णा ,
ईसा, मूसा की बातें ,
क्या कहूँ किसी से ,
चल पड़े जो ,
इनके रास्तों पर ,
ढूंढो उसे कही से ,
मिल जाये कही ,
जो कुछ आदमी ,
जरा मिला दो मुझ से ,
जो फैलाये आलोक ,
अँधेरा करें दूर ,
मानव अधिकार उन्ही से .......................क्या आप ऐसे आदमी बनने की कोशिश करेंगे ???????????????///////,
 

Monday 8 December 2014

मानव कौन

चारों तरफ मोती ,
बिखरे रहे मैं ही ,
पपीहा न बन पाया ,
स्वाति को न देख ,
और न समझ पाया ,
मानव बन कर ,,
भला मैंने क्या पाया ?
ना नीर क्षीर ,
को हंस सा कभी ,
अलग ही कर पाया ,
ना चींटी , कौवों ,
की तरह ही ,
ना ही श्वानों की ,
तरह भी ,
संकट में क्यों नहीं ,
कंधे से कन्धा मिला ,
लड़ क्यों ना पाया ,
मैंने मानव बन ,
क्यों नहीं पाया ?
सोचता हूँ अक्सर ,
मानव सियार क्यों ,
नहीं कहलाया ,
हिंसक शेर , भालू ,
विषधर क्यों ,
नहीं कहलाया ?
अपनों के बीच ,
रहकर उनको ही ,
खंजर मार देने के ,
गुण में कही मानव ,
जानवरों से इतर ,
मानव तो नहीं कहलाया ............मुझे नहीं मालूम कि क्यों मनुष्य है हम और किसके लिए है हम कोई कि अगर आपको जरूरत है है तो तो आप किसी मनुष्य के बारे में जानने की कोशिश करते भी है कि वो जिन्दा है या मर गया वरना आप किसी दूसरे मनुष्य में अपना मतलब ढूंढने लगे रहते है | मैं भी इसका हिस्सा हूँ मैं किसी को दोष नही दे रहा बस समझना चाहता हूँ कि जानवर के गुण तो हमें पता है पर हम!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!आज मैं पूरी तरह स्वस्थ हो गया थोड़े घाव है जो एक दो दिन में भर जायेंगे