Saturday 24 May 2014

आवारापन

आज लोग क्यों मुझे
मुझे आवारा कह गए ,
जमीन के टुकड़े बस ,
बंजर से अब रह गए ,
न बो सका एक बीज ,
न की कोई ही तरतीब.
पसीने का एक कतरा,
भी नही बहाया मैंने ,
न तो मैं कभी थका,
और ना ही उतरी थकान ,
आलोक कैसे चुनता अँधेरा ,
कैसे होता सृजन महान ,
मुझे आवारा कह कर ,
क्यों बादल बना रहे हो ,
धरती की अस्मिता को ,
घाव सा हरा कर रहे हो,
कहते क्यों नहीं तुम्हे ,
अपने सुख की आदत है ,
तुम्हारी ख़ुशी के लिए ,
जमी की आज शहादत है ,
जी लेने दो हर टुकड़े को ,
वही सच्ची इबादत है ..............पता नहीं क्यों मानव ने संस्कृति बनाने के बाद एक अजीब सी फितरत पाल ली कि अगर लड़का लड़की साथ में है तो सिर्फ एक ही काम होगा या फिर लड़की का मतलब ही सिर्फ एक ही है अगर आप अकेले है तो आप से कोई जरूर पूछ लेगा क्या भाई ???????????कोई मिली नहीं क्या ? अगर किसी के साथ है तो और भाई आज कल तो आपके बड़े मजे है शायद इसी मानसिकता के लिए हमने संस्कृति बनाई ....सोचियेगा जरूर

No comments:

Post a Comment