Thursday 22 March 2012

REPORT OF NATIONAL SEMINAR ON DISCRIMINATION BY AIRO&IAOSS ON 21ST MARCH 2012 IN LUCKNOW

कल अखिल भारतीय अधिकार संगठन ओर इंडियन असोसिअसन ऑफ़ सोशल साइंटिस्टस ने विश्व प्रजातीय भेद भाव दिवस पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी " मानव , मानवता और भारत में भेद भाव " विषय पर आयोजित हुई | कार्यक्रम का आरम्भ दीप प्रज्ज्वलन से हुआ  फिर संगोष्ठी के सचिव डॉ आलोक चान्टिया ने सभी का स्वागत करते हुए कहा कि आज कि संगोष्ठी में सबसे मत्वा पूर्ण मुद्दा यह है कि क्या भारत का संविधान स्वयं यह मान चूका है कि यह पर भेद भाव कभी नही ख़त्म होगा और इसी लिए  उसके अनुच्छेद १५, १६, और १७ को मूल अधिकार में रखा गया है ????? उन्हों में सभी अतिथियों का स्वागत किया | संगोष्ठी कि निदेशक  डॉ प्रीती मिश्रा  ने संगोष्ठी कि अवधारण को स्पष्ट करते हुए बताया कि देश में कितने तरह के भेद भाव चल रहे है और  इतिहास ,राजनीति, विधिक , सामाजिक , आर्थिक , धार्मिक आदि आधारों पर किस तरह का भाद भाव चल रहा है | लखनऊ के महा पौर प्रोफ़ेसर दिनेश शर्मा ने की और मुख्या वक्ता प्रोफ़ेसर शिव नन्दन मिश्रा जी थे अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में महा पौर ने खा की भारत में भाद भाव के लिए हमें भाषा को धयान में रखना होगा क्यों की धीरे धीरे पढ़े लिखे होने का पैमाना ही अंग्रेजी जन जा होता जा रहा है जिस के कारण हिंदी जानने वाले को हीन समझा जा रहा है और यही भेद भाव का कारण है | मुख्या वक्ता प्रोफ़ेसर मिश्रा ने कहा कि भेद भाव को अगर हम इतिहास के आईने में देखे तो जिस बौध धर्म हम इतना गर्व करते है और दलित उस धर्म को अपना धर्म मानते है  उसी बौध धर्म में २४ तीर्थंकर क्षत्रिये थे  न कि ब्रह्मण या वैश्य या शुद्र थे जीओ यह साबित करने के लिए काफी है कि भेद भाव तब भी था और आज तो आरक्षण नीति में तो भेद भाव ही है | आतिथियो को स्मृति  चिन्ह प्रदान किया गया | इसके बाद पहला और दूसरा तकनिकी सत्र प्रोफ़ेसर  आर . के . त्रिपाठी की अध्यक्षता में आरम्भ हुआ,  इस सत्र में करीब ३२ शोध पत्र पढ़े | दूसरे तकनिकी सत्र में २२ शोध पत्र पढ़े गए और उसकी अध्यक्षता प्रोफ़ेसर डी.पी . तिवारी जी द्वारा की गयी ,इस सत्र में एक शोध पत्र इराक के शोधार्थी द्वारा पढ़ा गया जिस में दोनों देशो में भाद भाव की तुलना की गयी | समापन सत्र की अध्यक्षता प्रोफ़ेसर कामेश्वर चौधरी ने की और उन्हों ने भेद भाव के सिद्धांत पर प्रकाश डाला.| अंत में संगोष्ठी सचिव डॉ आलोक चान्टिया द्वारा सबको धन्यवाद् ज्ञापन दिया गया उन्हों ने कहा की सर्वाभौमिक मानवाधिकार घोषणा पत्र के अनुच्छेद १ में कहा गया है कि प्रत्येक मनुष्य स्वतंत्र और समानता को लेकर पैदा होता है और सभी बुद्धि तथा अंतरात्मा से युक्त है , इस लिए सभी को एक दूसरे से भाई  चारे की तरह व्यवहार करना चाहिए | इस अनुच्छेद से स्पष्ट है कि पूरे विश्व में भेद भाव है और इस लिए सभी में भाई चारे को फ़ैलाने की बात कही गयी है | उन्होंने सभी को धन्यवाद् देते हुए कहा की ७१ शोध पत्र का प्राप्त होना और ज्यादा तर का प्रस्तुत किया जाना इस बात का प्रमाण है कि सभी भेद भाव के निवारण के प्रति संवेदन शील है और यही इस सेमिनार का उद्देश्य था जो सफल है | उन्होंने डॉ के.के . शुक्ल , डॉ एस. सी . हजेला . डॉ रमेश प्रताप सिंह , डॉ रेनू श्रीवास्तव , डॉ सुधा मिश्रा , डॉ श्वेता मिश्रा , डॉ अंशु केडिया , डॉ महिमा देवी , श्री मति सोनिया श्रीवास्तव , डॉ श्वेता  तिवारी , वंदना  त्रिपाठी , रोमी यादव , डॉ ब्रिजेध कुमार मिश्रा , प्रोफ़ेसर डी . पी तिवारी , प्रोफ़ेसर कामेश्वर चौधरी , प्रोफ़ास्र शिव नन्दन मिश्रा , प्रोफ़ेसर दिनेश शर्मा , प्रोफ़ेसर आर . के. त्रिपाठी , डॉ राहुल पटेल , डॉ केया पाण्डेय , डॉ संतोष उपाध्याय , रविन्द्र केशव, डॉ रोहित मिश्रा , डॉ सौरभ पालीवाल , डॉ के .एन  त्रिपाठी , डॉ राजेश तिवारी , डॉ नीता , डॉ रोली श्रीवास्तव , श्री विनीत , डॉ अनीस , डॉ प्रीती मिश्रा , श्री उमेश शुक्ल , अतुल कुमार सिंह , श्री संदीप कुमार सिंह , श्री विश्वनाथ , श्री विष्णु प्रताप , श्री प्रेम कुमार , श्री प्रन्शुल गौतम , और पंजी कारण संयोजक श्री शशांक उपाध्याय को धन्यवाद् दिया तथा यह भी सूचित किया कि शीघ्र ही अखिल भारतीय अधिकार संगठन एक अंतर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन करने वाला है और इसी के साथ एक दिवसीय संगोष्ठी समाप्त हो गई

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