Sunday 4 March 2012

aurat kha hai

आज से बस चार दिन दूर पर है महिला दिवस यानि पुरुष दिवस की शुन्यता से उभरी एक अवधारणा जिस ने पुरे विश्व को यह सोचने पर मजबूर किया कि महिला को वह साडी गरिमा नही प्राप्त है जो उसके ५०% भाग पुरुष को जन्म से ही हाशिल है . आज अखिल भारतीय अधिउकर संगठन आपके साथ इस विमर्श में एक हिस्सेदार बनकर कुछ ऐसी बात करना चाहता है जिससे महल्ला दिवस कि प्रासंगिकता सिद्ध हो सके और यही नही हम सच के भावार्थ को समझ सके . माँ बनने के सामाजिक तरीके और मान्य तरीको में विवाह में दहेज़ और दहेज़ हत्या के ज़हर से डरा समाज और महिला सशक्तिकरण के रह पर दौड़ती नारी के पास कोई विकल्प नही है कि वह या तो अकेले जीवन को चलने दे या फिर अप्रत्यक्ष रूप से प्रस्तुत लिविंग संबंधो के साथ आगे बढ़ने लगे , कुल मिला कर बात वही आकर रुक जाती है कि क्या पुरुष से इतर महिला का अस्तित्व कभी समाज के मकद जाल से मुक्त हो पायेगा पर ऐसा भी नही है कि पूरे भारत की महिला ने अपनी संस्कृति पर सेविश्वास खो दिया है और यही कारण है की आज भी विवाह हो रहे है पैसो की होली खेली जा रही है जिसके लिए भविष्य के लिए कुछ भी नही कहा जा सकता है  शायद इस से ज्यादा विश्वास वादी  वाले व्यक्ति पूरे विश्व में दुसरे देश में नही मिलते है , पर आइये कुछ उदहारण आपको देता हूँ जिसमे आपको आसनी से पता चल जायेगा कि लड़की विवाह करके भारत में किस हाल में है . अखिल भारतीय अधिकार संगठन काफी समय से महिलाओ के अधिकारों के लिए जागरूकता जगाता रहा है और विधिक लड़ाई भी लड़ता रहा है , एक उदहारण लखनऊ के सुरेन्द्र नगर की है और शादी के बाद पहली ही रात लड़के ने यह कहकर लड़की को छोड़ दिया कि उसके शरीर पर मांस ज्यादा है , लड़की माँ विधवा है मैंने काफी समझाया पर उनका कहना था कि भैया बेकार में कोर्ट कचेहरी दौड़ने से कोई फायेदा नही है बल्कि मेरी लड़की और दुर्गति हो जाएगी और उन्होंने इलाहाबाद में पहले से शादी किये हुए एक लड़के से फिर अपनी लड़की की शादी कर दी और वह भी लड़की खुश नही है और पानी बहन की दुर्गति देख कर छोटी बहन ने दर से आज तक शादी नही की . दूसरा उदहारण इंदिरा नगर की है झा पर एक लड़की की शादी हुई आशियाना में लड़की खुबसूरत है  पर जब वह शादी होकर गई तो घर वाले उसे यह कहने लगे की तुम इतनी दुबली हो जरुर कोई बीमारी है और इसी बीच वह माँ बन गई और एक लड़के को जनम दिया पर जन्म के बाद उसे मइके भेज दिया गया , बच्चे को रोक लिया गया , इस से बड़ा अपराध क्या होगा की दूध मुह बच्चा माँ से अलग कर दिया गया और इस इ सदमे में माँ की तबियत ख़राब होती चली गई आज लड़की को सुगर हो चुकी है , किडनी फेल हो गई है और डॉक्टर जवाब दे चुके है , लड़की के घर वाले भी कुछ नही कर रहे क्यों की उन्हें पता है की न्याय मिलना नही है , तीसरा केस एक ऐसी महिला का है जो पढ़ी लिखी है और नौकरी करती और उसके शादी एक इंजिनियर से हुई पर शादी के बाद ही लड़का खाने लगा की की तुम्हरा स्कूल में चक्कर है और उसने छोड़ दिया तब तक महिला गर्भवती हो गई थी , आज उसके लड़की है और वह खुद ऐसे पुरुष के साथ नही रहना चाहती और अपने माँ बाप के साथ है . इन सब के अतिरिक्त एक वाद ऐसी महिला का है जिसमे पीटीआई ने शादी के बाद एक झूठा  वाद दुसरे शहर में चला रखा और यह दिखाता रहा की पत्नी उसके साथ नही रह रही है और  पत्नी के साथ हर गलत काम करता रहा , पत्नी ने राज्य महिला आयोग , मानवाधिकार आयोग , पोलिसे सभी जगह शिकायत की है औत पत्नी का शोषण रुक गया है पर पीटीआई के खिलाफ कही से कुछ नही किया गया जबकि जांच में पीटीआई और उसके नंदोई गलत साबित हो चूका है ...इन उदाहरानो से क्या ऐसा लगता है की शादी एक बेहतर विकल्प रह गया है लड़की के लिए और आज आज की महिला पहले की महिला से बेहतर है ????????? शायद महिला दिवस का मतलब एक दिन सिर्फ थोथी बाते करने भर है और औअर्ट पानी दुर्गति से उबार ही नही पा रही ...अगर आपको लगता है कि लेख में सच है तो औअर्ट के जीवन को हसने का मौका दे उसे यह एहसास न कराए कि वह पिता के घर भी पराई है और पति के घर तो वह दुसरे गढ़ की प्राणी है ...अखिल भर्तुये अधिकसंगठन के साथ आप भी महिला दिवस को अपने घर में मनाये और अपने घर की किसी भी महिला की ख़ुशी के लिए एक सार्थक प्रयास करे .....डॉ आलोक चान्त्टिया

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