Friday 13 May 2011

यह कैसी जिंदगी?

कभी कभी सोचता हूँ कि हम प्रगति व विकास के रस्ते पर हैं या विनाश के। कल्पना कीजये जब इस मानव की रचना पृथ्वी पर हुई होगी तो सबसे बड़ी उसकी समस्या क्या थी। मेरी समझ में सबसे बड़ी समस्या अपनी आबादी को बढाना रही होगी। क्योंकि मनुष्य अन्य जीवों के मुकाबले काफी कमजोर प्राणी रहा होगा । उसके पास न तो बड़े बड़े जानवरों जैसा शरीर न ताकत, न भागने की छमता ,और न ही प्रकृति से लड़ने की छमता। हाँ एक चीज़ उसके पास जरूर थी और वो थी उसकी अन्य प्राणियों की तुलना में अधिक बुद्धि । इसी बुद्धि के कारण उसने अन्य जीवों पर विजय प्राप्त करने के तरीके निकले। नयी नयी खोजें अविष्कार किये जिनसे उसने अपना जीवन सहज बनाने के चक्कर में और भी जटिल एवं समस्याग्रस्त करता गया। जीवन तो सीमित है पर जीने के लिए सामान असीमित बना डाले,और आज उसी के चक्कर में लालच , भ्रष्टाचार , बेईमानी में अपने दिल पर भारी बोझ लिए वह जीने को मजबूर है। कल्पना कीजिये आज से १००-२०० वर्ष पूर्व के भारत के नागरिक की । उस समय व्यक्ति के पास गिने चुने कार्य थे जिसमे मुख्य रूप से भोजन , कपडा एवं रहने के लिए सुरक्षित स्थान की ही समस्या रहा करती रही होगी।मुख्य रूप से जीवन को पूर्ण करने के लिए आज भी वही कार्य हैं। परन्तु आज के युग में तमाम संसाधनों के पा लेने की बहुत सारी कल्पनाएँ हैं। आज हर एक के पास ढेर सारे सपने एवं उन सपनों को पूरा करने के लिए ढेर सारे कार्य हैं । जीवन चक्र पहले भी पूरा कर रहा था और जीवन चक्र आज भी मानव पूरा कर रहा है; परन्तु बड़ी भीड़ , अधिक परेशानी , अधिक चिंताओं के बीच। गलाकाट प्रतिस्पर्धा के बीच आज जीवन कठिन होता जा रहा है। हताशा, निराशा में तरह तरह के मनोवैज्ञानिक रोग बढ रहें हैं। महानगरों में देखिये जिंदगी २४ घंटे किस रफ़्तार से भाग रही है । एक ऐसी भीड़ की तरह जो शायद अपना लक्ष्य भूल गयी हो। जहाँ हर व्यक्ति बिन दिमाग लगाये दुसरे व्यक्ति के पीछे उससे आगे निकलने के लिए दौड़ रहा हो। सुख चैन हराम है ।छोटे संकुचित लक्ष्य और बस भागम भाग।अपनापन समाप्त हो रहा है, आत्मीयता समाप्त हो रही है । मित्रता लाभ के लोभ या हानि के भयवश है; पारिवारिक रिश्ते स्वार्थ पर आधारित हैं।

1 comment:

  1. bilkul sahi kaha..... Upbhoktawad ki is andhi daud mein Insaniyat samapt hoti jaa rahi hai...

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