Sunday 17 April 2011

कानपूर यूनिवर्सिटी ब्लाग का उद्भव : शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी कदम; बी डी पाण्डेय

कानपुर विश्वविद्यालय ब्लोग्गर्स असोशिएसन के उदभव पर समस्त बुद्धजीवी वर्ग को शुभकामनाएं. भाई पवन मिश्र जी विशेष रूप से धन्यवाद के पात्र हैं इसलिए कि उन्होंने एक ऐसा मंच तैयार कर दिया है कि आशा करता हूँ हर वो जो विश्वविद्यालयों खासकर कानपुर विश्वविद्यालय के गिरते स्तर के प्रति जागरूक है , चिंतित है , इसके माध्यम से अपनी आवाज़ को उठा सकता है, आगे बढ़ा सकता है. साथिओं, आजकल शिक्षा व्यवस्था एक संक्रमण काल से गुजर रही है. जहाँ एक तरफ सूचना के क्षेत्र में क्रांति है वहीँ सरकारी नीतियों के चलते स्ववित्त पोषित महाविद्यालयों , विश्वविद्यालयों की बाढ़ से अनेकानेक परिवर्तन हो रहें हैं एवं निकट भविष्य में संभव है. वर्तमान में शिक्षा के केन्द्रों के नाम पर धन उगाही केन्द्रों की स्थापना हो रही है. शिक्षकों , छात्रों का शोषण हो रहा है उच्च शिक्षा के नाम पर पैसे लेकर नक़ल कराकर डिग्री बांटना एक परंपरा के रूप में स्थापित होने को है. ऐसे में ईमानदार, ऐसे जो सही मायनो में शिक्षक है, अत्यधिक घुटन भरा वातावरण महसूस कर रहें हैं. हमारे ही बीच ऐसे गिरोहों की स्थापना हो चुकी है जो शिक्षा एवं शिक्षण के पुनीत उद्देश्यों से भटक कर पॉवर एवं पैसा एकत्रित कर आगे बढकर भ्रष्ट राजनीति में संलिप्त होने की कतार में खड़े हैं. शिक्षक संगठन, जो कभी शिक्षकों के मार्गदर्शक के रूप में कार्य करते थे आज उनके उद्देश्य निजी स्वार्थों पर आधारित होने के कारण अपना अस्तित्व खो रहें हैं. एक कसक सी है आज समाज में इस विसंगति से भरे उच्च शिक्षा के तिलस्म पर कुठाराघात करने की. लोकतान्त्रिक परम्पराओं का लोप हो रहा है. ऐसे में परम आवशयकता है एक ऐसे मंच की जिसके माध्यम से विसंगतियों, कुरीतियों, भ्रष्टाचार, निजी स्वार्थों के तले कराह रही उच्च शिक्षा को उबारकर उसे सम्मानपूर्वक समाज में स्थापित ऐसे ढंग से करने की कि वह आने वाली नस्लों का मार्गदर्शन कर उन्हें बेहतर जीवन जीने के अवसर प्रदान कर सके. उच्च शिक्षा के आदर्श उद्देश्यों की प्राप्ति में बाधा बने चन्द स्वयंभू ठेकेदारों को बेनकाब करने की भी विशेष जरूरत है. आप सभी से अनुरोध है कि खुलकर इस मंच पर निर्भीकता के साथ अपने अनुभव एवं विचार रखकर शिक्षा जगत में एक रचनात्मक क्रांति के जनक बनने में सहयोग प्रदान करें. आपकी इस ब्लॉग पर अभिव्यक्ति को जहाँ उसे वास्तव में पहुँच कर आशानुरूप परिणाम मिल सके पहुँचाने का पूरा प्रयास करने का वचन देते हुए पुनः शुभकामनाएं एवं धन्यवाद. डॉ. बी. डी. पाण्डेय.

3 comments:

  1. respected sir,yah jaan kar apar harsh hua ki aap is ladai me sath de rahe hai.aap ko KUTBA ka president chune jaane par apko self finance ke teechars ki taraf se hardik bandai.

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  2. badhaai ho Sir
    a candle against dence dark

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  3. ब्लॉग पर शुभकामनायें प्रेषित करने वाले सदस्यों के प्रति आभार प्रकट करते हुए , उनके निर्रंतर सहयोग की कामना करते हुए अपनी बात को आगे बढ़ाता हूँ. साथियों, कानपुर विश्विद्यालय से जुड़े ५०० से अधिक स्ववित्त पोषित एवं ६१ शासकीय सहायता प्राप्त कालेज हैं. स्ववित्त पोषित महाविद्यालयों की स्थिति से सब वाकिफ हैं. प्रबन्ध तंत्र से लेकर शासन तक सभी इनसे धन उगाही करते हैं और यह धन इन कालेजों में पढने वाले छात्रों उनके अभिभावकों एवं पढ़ाने वाले शिक्षकों की जेब काटकर एकत्र किया जाता है. एक ऐसा कुचक्र चल पड़ा है कि जाने,अनजाने या मजबूरीवश या लोभ,कायरतावश समाज के अनेक वर्ग इसमें साझीदार हैं. ऐसे में शिक्षक संघों की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है. दुर्भाग्य है कि विश्वविद्यालय के एकमात्र शिक्षक संगठन कानपुर विश्वविद्यालय शिक्षक संघ जिसे कूटा के नाम से जाना जाता है की निगाह आज तक इन कालेजों में पढ़ा रहे शिक्षकों की दुर्गति की ओर नहीं पड़ी है. मैंने बार बार कूटा के मंच से जब भी मुझे बोलने का अवसर प्रदान किया गया (हालाँकि जबतक आप मजबूत नहीं है या चाटुकार नहीं हैं कूटा के मंच से आप शायद ही बोल पाने का अवसर प्राप्त कर सकें) इस बात को उठाया है. कुल मिलाकर आज तक इतनी उपलब्धि हो पाई है की कूटा नें बड़े दबाव में ,दबी जुबान से ,कुछ सेल्फ फाइनेंस शिक्षकों को भी मूल्याङ्कन कार्य करने का समर्थन किया है. जिससे पिछले वर्ष से इन शिक्षकों को मूल्याङ्कन एवं इस वर्ष से मानदेय शिक्षकों को आंतरिक परीक्षक बनने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है. साथियों कूटा की मानसिक संकीर्णता का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं की आज तक किसी भी सेल्फ फाइनेंस कालेज के शिक्षक , अथवा मानदेय शिक्षक को अपना सदस्य तक नहीं बनाया इस खोखले तर्कहीन आधार पर कि संविधान में व्यवस्था नहीं है. जैसे संविधान कोई ऐसी चीज़ हो जो असमान से टपकी हो. अरे भाई अपना कार्यकाल बढ़ाने, अपनी गिरोह रूपी संगठन की सुविधाओं को बरक़रार रखने के लिए के लिए दस उलटे सीधे असंवैधानिक बिना कोरम के संविधान संशोधन कर सकते हो. लेकिन अपने साथी सरकारी नीतियों का शिकार, आपसे कहीं ज्यादा काबिल, स्ववित्त पोषित शिक्षक, मानदेय शिक्षक को अपना सदस्य नहीं बना सकते . अगर किसी कोने से किसी नें आवाज उठाई तो उसे सब मिलकर कुतर्क से अथवा शोरगुल ,हंगामा करके अथवा पाखंड से भरा आश्वासन देकर कि बाद में देखेंगे , कहकर टाल देते हैं. बड़ी सीधी सी बात है जिस शिक्षक को आप अपने संगठन का सदस्य नहीं बना सकते उसके प्रति सहानुभूति, या किसी प्रकार की संवेदना या उसके हितों कि रक्षा महज एक ढोंग , दिखावा, पाखंड है. और यह पाखंड अब बहुत दिनों तक चलने वाला नहीं है. मेरा यह सब कहने का अर्थ कदापि न लगाया जाय कि मैं किसी अनुदानित अथवा शासकीय महाविद्यालय में कार्यरत शिक्षक या उनके हितों का विरोध कर रहा हूँ. ऐसा करना भी मेरे लिए मूर्खता होगी क्योंकि मैं खुद अनुदानित महाविद्यालय में विगत २३ वर्षों से शिक्षण कार्य कर रहा हूँ. हालाँकि कूटा के तथाकथित पदाधिकारी यही कहेंगे और कहकर मेरे ऊपर अनाप शनाप आरोप लगायेंगे कि मैं संगठन विरोधी हूँ, पर मुझे यह नहीं समझ में आता कि मैं किस तरह से संगठन का विरोध कर रहा हूँ. अगर ६१ कालेजों के शिक्षक ५०० कालेजों के शिक्षकों के साथ मिलकर अपनी आवाज उठायें तो मुझे लगता है कि वह आवाज़ लगभग १० गुना अधिक शक्तिशाली होगी, समस्त शिक्षकों क़ी होगी. मैं स्वयं कूटा का सदस्य था और हूँ भी. कूटा की कालेज इकाई का अध्यक्ष एवं मंत्री भी रहा हूँ और अपने दायित्वों का ईमानदारी पूर्वक निर्वहन भी किया है और वर्तमान में भी कर भी रहा हूँ . कूटा की कार्यकारिणी में भी रहकर देख चुका हूँ. एहसास हुआ क़ी संगठन अन्दर से खोखला हो चुका है चन्द ऐसे लोगों के कारण जिनकी संगठन में पदाधिकारी बने रहना मजबूरी हो गया इसलिए क़ी इसके सहारे कारोबार इतना बढ़ गया कि भय है कि कहीं अगर हट गए तो सब चौपट हो जायेगा. अगर मजबूरीवश हटना भी पड़े तो ऐसा कोई पदाधिकारी बने जो गुलाम हो , जिसकी स्वतंत्र सोच की छमता न हो. सीधे न सही रिमोट से ही शासन चलता रहे, मलाई छनती रहे. लक्ष्य छुद्र रखो,संगठन को सीमित किये रहो. कहीं ऐसा न हो कुछ अधिक काबिल लोग आ जाँय और साम्राज्य खतरे में पड़ जाय छुद्र लक्ष्यों वाले व्यक्ति ही एक सीमित संगठन के दायरे में रहना पसंद करते हैं। डरते हैं; उससे बाहर निकलकर भय है समाज में गुम हो जाने का। व्यक्ति के अगर लक्ष्य अगर ऊँचे हैं तो एक क्या दस संगठन बन जाएँ , उसके कार्यों में बाधा नहीं आएगी. आज एक पुनर्जागरण की आवश्यकता है उच्च शिक्षित समाज में , खासकर डिग्री शिक्षक वर्ग के संगठन में. शायद किसी कोण से उम्मीद की किरण झाँक रही है. डॉ. बी.डी.पाण्डेय.

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